शनिवार, 6 अगस्त 2011

नासमझ

नासमझ


नन्ही पिंकी आज बहुत खुश थी। जिन गन्दी गरीब लड़कियों के साथ उसे खेलने की इजाजत नहीं थी, आज उन्हें ही बंगले में बुलाया गया था। वो भी दादी माँ के आदेश पर।

आज दुर्गाष्टमी जो थी। दादी माँ ने अपने हाथों से उन सभी के ललाट पर रोली का टीका लगाया। उनके हाथों में मौली का धागा बाँधकर उनका पूजन किया फिर उन सभी के आगे बड़े–बड़े थाल भरकर खरी–पूड़ी, हलवा व चने का शाक परोसा।

इस पर माँ ने हल्का-सा विरोध किया था, ‘‘ माँ जी इतनी छोटी बच्चियाँ इतना ज्यादा खाना नहीं खा पाएंगी।’’
दादी भड़क उठी थीं, ‘‘ये कैसी ओछी बात कर दी बहू तुमने। देवी के के शाप से डरो। ये कन्याएँ देवी का ही रूप् हैं।’’ माँ ने फौरन चुप्पी साध ली थी।
शरमाती–सकुचाती, सहमी हुई बच्चियों ने आधे से ज्यादा खाना झूठा छोड़ दिया था। दादी ने उन गरीब बच्चियों के हाथ में दस–दस रुपए के करारे नोट पकड़ाए।
उनके जाने के बाद दादी के कहने पर नौकर रामू ने उनकी थालियों की जूठन चार प्लास्टिक की थैलियों में भरकर दरवाजे पर रख दी। ये सब देख पिंकी पूछ बैठी।

‘‘दादी जूठे खाने को रामू ने थैलियों में डालकर क्यों रखा है?’’

दादी ने समझाया, ‘‘आज दुर्गाष्टमी है ना। जमादारिन खाना माँगने आती ही होगी उसे देने के लिए ही रखा है।’’
पिंकी किंचित हैरानी से बोली, ‘‘दादी ये तो जूठा खाना है। आप तो कहती हो कि किसी दूसरे का जूठा खाना नहीं खाना चाहिए। बहुत सी बीमारियाँ लग जाती हैं और पाप भी लगता है?’’

दादी मुस्करायी, ‘‘अरे बिट्टो आज के दिन कन्याओं का ये जूठन,देवी का प्रसाद होता है, इसे खाकर तो जमादारिन की सभी बीमारियाँ ठीक हो जाएगी साथ ही उसके कई जन्मों के पाप भी धुल जाएंगे।
जमादारिन की रोटी माँगने की आवाज सुनकर रामू खाने की थैलियाँ लेने अन्दर आया किन्तु कमरे का दृश्य देखकर स्तब्ध रह गया। पिंकी थैलियों में रखी जूठन निकालकर अपनी खाने की थाली में डाल रही थी। तभी दादी माँ भी जमादारिन को पैसे देने उधर आ पहुँची।
‘‘पिंकी ये क्या गजब कर रही है?’’
दादी माँ की दहाड़ सुनकर सहमी पिंकी धीरे से बोली, ‘‘दादी थोड़ा सा देवी का प्रसाद ले रही थी। इसके खाने से मेरे टांसिल भी हमेशा-हमेशा के लिए ठीक हो जाएंगे।’’
दादी भड़क उठी, ‘‘बेवकूफ लड़की ये खाना तेरे लिए जहर है। ना जाने कितनी बीमारियाँ समेटे गन्दे, गरीब व छोटी जात की लड़कियों की जूठन है ये। मूर्खा दुनिया भर के पाप अपने सिर पर लगाना चाहती है?’’
पिंकी हैरान थी, ‘‘पर दादी आपने ही तो कहा था कि ये देवी माँ का प्रसाद है। इसके खाने से जमादारिन की सभी बीमारियाँ ठीक हो जाएगी तो फिर मेरे टांसिल....दादी आग बबूला हो उसी बात काटती हुई चिल्लाई, ‘‘चुप कर, बित्ते भर की छोकरी होकर मुझसे बहस करती है। आज तक तेरी माँ की हिम्मत नहीं हुई, मुझसे इस तरह के सवाल–जवाब करने की।’’
नन्हीं पिंकी सहमकर चुप हो गई लेकिन अब भी उसकी समझ में ये नहीं आ रहा था कि जूठा खाना जमादारिन के लिए देवी का प्रसाद है वो उसके लिए जहर कैसे हो सकता है?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें