शुक्रवार, 5 अगस्त 2011

अँधेरे के खिलाफ ........

अँधेरे के खिलाफ
--------------------

पत्नी की बीमारी, भ्रष्टाचार के मिथ्या आरोप तथा महीनों से रुका वेतन........इन तमाम झंझावातों ने अनूप को झकझोर कर रखा दिया था तभी तो उसका मनोबल टूटने की चरम तक पहुँचा।

बहुत सोच–विचार के बाद आज अनूप जहरीली गोलियाँ ले आया, जिन्हें वह दूध में मिला कर पत्नी रमा और बिटिया अनु के साथ पी जाने की ठान बैठा था। उसे सहसा रमा और अनु पर तरस आने लगा जो उसके खूंखार इरादों से अनजान थीं।

रात के साढ़े नौ बजने को थे। बारिश–बिजली और तेज हवाओं से वातावरण बोझिल हो चला था। बस कुछ समय और, फिर तमाम चिंताओं–परेशानियों से सदा के लिए मुक्ति. .... . ....। उसने सोचा और दूध गैस पर गर्म करने के लिए रख दिया। शक्कर के साथ गोलियाँ भी दूध में डाल दीं तभी अचानक लाइट गुल हो गई।

‘शिट–शिट’ अनूप ने झल्लाते हुए मोमबत्ती खोजी और जलाई जो हवा के कारण तत्काल बुझ गई। उसने फिर जलाई, इस बार अनु, जो पास ही खड़ी थी, अपने नन्हें हाथों की ओट कर खिड़की से आ रही तेज हवाओं से काँपती मोमबत्ती को बुझने–से बचाने की भरसक कोशिश में लग गई। कुछ क्षणों तक वह अपलक यह दृश्य देखता रहा फिर अँधेरे के खिलाफ जंग में वह भी शामिल हो गया और उसने जहरीला दूध सिंक में उंड़ेल कर नल चालू कर दिया......।
चंद लाईनें सहज ही उसकी जुबान पर आ गयीं.....
‘सबसे छुपा के दर्द, जो वो मुस्कुरा दिया।
उसकी हंसी ने तो आज मुझे रूला दिया।
लहजे से उठ रहा था, हर एक दर्द का धुआं।
चेहरा बता रहा था कि कुछ गवां दिया।
आवाज में ठहराव था, आंखों में नमी थी।
और कह रहा था कि मैंने सबकुछ भूला दिया।।’

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें