झगड़ रहे थे,खच्चर की देखभाल वे ही करेंगे............
उम्र के इस मुकाम पर जब उसे आराम की ज़रूरत थी, रामलाल खच्चर रेहड़ी पर सीमेंट, लोगों के घर का सामान, सब्जी मंडी से सब्जी आदि लाद कर, यहाँ से वहाँ पहुँचाता था। घर हालांकि बहुत बड़ा था, पर उसमें रामलाल और उसकी पत्नी ही रहते थे। अपनी दिन–प्रतिदिन कमजोर होती देह को किसी तरह संभाले,अपने खच्चर के साथ रामलाल दिन भर मजदूरी करता और तीनो जने, मतलब रामलाल उसकी पत्नी और खच्चर किसी तरह खा–पीकर आराम करते। यह बड़ा सा मकान रामलाल ने अपनी जवानी में ही बना लिया था। दो बेटे हुए, उनको पढ़ाया, बेटों को अच्छी नौकरी मिली, उनकी शादियाँ हुई और वे अलग होकर रहने लगे। रामलाल ने यह समझदारी की, कि जीते जी अपनी संपति का बंटवारा नहीं किया। लेकिन बेटे नाराज थे कि पिताजी आज भी खच्चर रेहड़ी चलाते हैं। पता नहीं किसके लिए कमा रहे हैं। बेटों को तो कुछ देते नहीं। हालांकि बेटों से कुछ लेते भी नहीं थे रामलाल!
जैसेकि आमतौर पर सभी बूढ़ों के साथ होता है, अन्तत: ऐसी स्थिति भी आई कि रामलाल का शरीर जवाब दे गया और वे खच्चर रेहड़ी चलाने में भी असमर्थ हो गए। बस किसी तरह अपनी दैनिक दिनचर्या निभाते। बेटों ने फिर याद दिलाया कि अब तो खच्चर की ज़रूरत भी नहीं रही। सो किस लिए उसे रखा हुआ है। रामलाल ने बेटों को अपने घर में ही मस्त रहने की सलाह दी और कहा कि वे उसे सलाह न दें। रामलाल खच्चर की बाग पकड़े टहलने निकलते और कभी- कभार उसकी पीठ पर सवार हो वापिस लौटते। पत्नी भी अब आराम के लिए कहने लगी थी, हालांकि खच्चर बेच देने के लिए उसने कभी नहीं कहा।
रामलाल की मृत्यु हो गई। रामलाल की पत्नी ने न जाने क्या सोच कर तब भी खच्चर को नहीं बेचा। हालांकि बेटों ने अब भी कहा कि खच्चर समेत इस पुराने मकान को भी बेच दिया जाए और सब भाइयों में इसका बँटवारा कर दिया जाए। लेकिन वे असफल होकर अपने–अपने घरों को लौट गए। कुछ ही दिनों बाद रामलाल की पत्नी की भी मृत्यु हो गई। रामलाल के बेटे, रामलाल ने वसीयत और खच्चर सबको ठिकाने लगाने की योजना बना ही रहे थे कि पता चला रामलाल ने वसीयत की हुई है। अजीब सी बात है कि उन्होंने अपने बेटों को कभी इसके बारे में नहीं बताया था। एक वकील ने बताया कि रामलाल की वसीयत के अनुसार रामलाल और उसकी पत्नी की मृत्यु के बाद जब तक वह खच्चर जीवित रहेगा, उसके खान–पान का इंतजाम उनके बैंक खाते से किया जाए। न तो उनका मकान खच्चर के रहते बेचा जाए और न ही किराए पर दिया जाए। हाँ, जो व्यक्ति खच्चर की देखभाल करेगा, वह उस मकान के एक हिस्से में रह सकता हे। खच्चर की मृत्यु के बाद यह मकान और संपति आदि उसी को दी जाए, जिसने खच्चर की देखभाल की हो।
जिन बेटों ने कभी बाप की परवाह नहीं की, जो उसे खच्चर बेचने के बार–बार दबाव डालते रहे, वे ही अब झगड़ रहे थे कि खच्चर की देखभाल वे ही करेंगे।
उम्र के इस मुकाम पर जब उसे आराम की ज़रूरत थी, रामलाल खच्चर रेहड़ी पर सीमेंट, लोगों के घर का सामान, सब्जी मंडी से सब्जी आदि लाद कर, यहाँ से वहाँ पहुँचाता था। घर हालांकि बहुत बड़ा था, पर उसमें रामलाल और उसकी पत्नी ही रहते थे। अपनी दिन–प्रतिदिन कमजोर होती देह को किसी तरह संभाले,अपने खच्चर के साथ रामलाल दिन भर मजदूरी करता और तीनो जने, मतलब रामलाल उसकी पत्नी और खच्चर किसी तरह खा–पीकर आराम करते। यह बड़ा सा मकान रामलाल ने अपनी जवानी में ही बना लिया था। दो बेटे हुए, उनको पढ़ाया, बेटों को अच्छी नौकरी मिली, उनकी शादियाँ हुई और वे अलग होकर रहने लगे। रामलाल ने यह समझदारी की, कि जीते जी अपनी संपति का बंटवारा नहीं किया। लेकिन बेटे नाराज थे कि पिताजी आज भी खच्चर रेहड़ी चलाते हैं। पता नहीं किसके लिए कमा रहे हैं। बेटों को तो कुछ देते नहीं। हालांकि बेटों से कुछ लेते भी नहीं थे रामलाल!
जैसेकि आमतौर पर सभी बूढ़ों के साथ होता है, अन्तत: ऐसी स्थिति भी आई कि रामलाल का शरीर जवाब दे गया और वे खच्चर रेहड़ी चलाने में भी असमर्थ हो गए। बस किसी तरह अपनी दैनिक दिनचर्या निभाते। बेटों ने फिर याद दिलाया कि अब तो खच्चर की ज़रूरत भी नहीं रही। सो किस लिए उसे रखा हुआ है। रामलाल ने बेटों को अपने घर में ही मस्त रहने की सलाह दी और कहा कि वे उसे सलाह न दें। रामलाल खच्चर की बाग पकड़े टहलने निकलते और कभी- कभार उसकी पीठ पर सवार हो वापिस लौटते। पत्नी भी अब आराम के लिए कहने लगी थी, हालांकि खच्चर बेच देने के लिए उसने कभी नहीं कहा।
रामलाल की मृत्यु हो गई। रामलाल की पत्नी ने न जाने क्या सोच कर तब भी खच्चर को नहीं बेचा। हालांकि बेटों ने अब भी कहा कि खच्चर समेत इस पुराने मकान को भी बेच दिया जाए और सब भाइयों में इसका बँटवारा कर दिया जाए। लेकिन वे असफल होकर अपने–अपने घरों को लौट गए। कुछ ही दिनों बाद रामलाल की पत्नी की भी मृत्यु हो गई। रामलाल के बेटे, रामलाल ने वसीयत और खच्चर सबको ठिकाने लगाने की योजना बना ही रहे थे कि पता चला रामलाल ने वसीयत की हुई है। अजीब सी बात है कि उन्होंने अपने बेटों को कभी इसके बारे में नहीं बताया था। एक वकील ने बताया कि रामलाल की वसीयत के अनुसार रामलाल और उसकी पत्नी की मृत्यु के बाद जब तक वह खच्चर जीवित रहेगा, उसके खान–पान का इंतजाम उनके बैंक खाते से किया जाए। न तो उनका मकान खच्चर के रहते बेचा जाए और न ही किराए पर दिया जाए। हाँ, जो व्यक्ति खच्चर की देखभाल करेगा, वह उस मकान के एक हिस्से में रह सकता हे। खच्चर की मृत्यु के बाद यह मकान और संपति आदि उसी को दी जाए, जिसने खच्चर की देखभाल की हो।
जिन बेटों ने कभी बाप की परवाह नहीं की, जो उसे खच्चर बेचने के बार–बार दबाव डालते रहे, वे ही अब झगड़ रहे थे कि खच्चर की देखभाल वे ही करेंगे।
जैसेकि आमतौर पर सभी बूढ़ों के साथ होता है, अन्तत: ऐसी स्थिति भी आई कि रामलाल का शरीर जवाब दे गया और वे खच्चर रेहड़ी चलाने में भी असमर्थ हो गए। बस किसी तरह अपनी दैनिक दिनचर्या निभाते। बेटों ने फिर याद दिलाया कि अब तो खच्चर की ज़रूरत भी नहीं रही। सो किस लिए उसे रखा हुआ है। रामलाल ने बेटों को अपने घर में ही मस्त रहने की सलाह दी और कहा कि वे उसे सलाह न दें। रामलाल खच्चर की बाग पकड़े टहलने निकलते और कभी- कभार उसकी पीठ पर सवार हो वापिस लौटते। पत्नी भी अब आराम के लिए कहने लगी थी, हालांकि खच्चर बेच देने के लिए उसने कभी नहीं कहा।
रामलाल की मृत्यु हो गई। रामलाल की पत्नी ने न जाने क्या सोच कर तब भी खच्चर को नहीं बेचा। हालांकि बेटों ने अब भी कहा कि खच्चर समेत इस पुराने मकान को भी बेच दिया जाए और सब भाइयों में इसका बँटवारा कर दिया जाए। लेकिन वे असफल होकर अपने–अपने घरों को लौट गए। कुछ ही दिनों बाद रामलाल की पत्नी की भी मृत्यु हो गई। रामलाल के बेटे, रामलाल ने वसीयत और खच्चर सबको ठिकाने लगाने की योजना बना ही रहे थे कि पता चला रामलाल ने वसीयत की हुई है। अजीब सी बात है कि उन्होंने अपने बेटों को कभी इसके बारे में नहीं बताया था। एक वकील ने बताया कि रामलाल की वसीयत के अनुसार रामलाल और उसकी पत्नी की मृत्यु के बाद जब तक वह खच्चर जीवित रहेगा, उसके खान–पान का इंतजाम उनके बैंक खाते से किया जाए। न तो उनका मकान खच्चर के रहते बेचा जाए और न ही किराए पर दिया जाए। हाँ, जो व्यक्ति खच्चर की देखभाल करेगा, वह उस मकान के एक हिस्से में रह सकता हे। खच्चर की मृत्यु के बाद यह मकान और संपति आदि उसी को दी जाए, जिसने खच्चर की देखभाल की हो।
जिन बेटों ने कभी बाप की परवाह नहीं की, जो उसे खच्चर बेचने के बार–बार दबाव डालते रहे, वे ही अब झगड़ रहे थे कि खच्चर की देखभाल वे ही करेंगे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें