रविवार, 7 अक्तूबर 2012

मन के नैन हजार.......: " स " से सावधान .................अजीब लग रहा हैं ...

मन के नैन हजार.......: " स " से सावधान .................
अजीब लग रहा हैं ...
: " स " से सावधान ................. अजीब लग रहा हैं न ?पर ये सच्चाई है महिलाओं के लिये पहला " स " तो " सगाई " से ही शुरू हो जाता है उससे निज...
" स " से सावधान .................
अजीब लग रहा हैं न ?पर ये सच्चाई है महिलाओं के लिये पहला " स " तो " सगाई " से ही शुरू हो जाता है उससे निजात मिलती है तो " सास " सामने आ जाती है जो "साँस " तक लेने नही देती है उनसे बची तो "सार्स " यानि चीनी की बिमारी भी इनकी पक्की सहेली होती है ,श्रंगार प्रेमी होने के कारण " सोने " से भी डर, बच गये तो नये शत्रु यानी " सफर " "सड़क " और यहाँ तक की "सहेलियाँ "भी कम खतरा नही होती ,उनका "सनम " न ले उडें ,पर सबसे बड़ा खतरा तो "सजन " के रूप में आता है फिर" शरारत " " शराब " जिनसे बचने के लिये "सजना " संवरना " पड़ता है एक और खतरा इन्तजार में ही रहता है "सौत " के रूप में ,जिससे "सपने " में भी डर लगता है |ये सभी " स " एक " सदमे " का रूप ले लेते हैं |
तभी तो कहता हूँ महिलाएं पुरुषों से ज्यादा भावुक होती हैं " संकट " में फसे व्यक्तियों को "संकट " से छुटकारे के लिये "समझाने " लगती हैं यही समझाना ही उनके लिये "संकट " बन जाता है "सफाई " भी देनी पडती है सो अलग ,है न "स " खतरनाक क्रपया "स " से दूर ही रहे ,ये भी एक विडम्बना ही ही है मेरा नाम भी तो "स " से ही है .......................

शनिवार, 22 सितंबर 2012


रविवार, 16 सितंबर 2012

मन के नैन हजार.......: ‎"मैं ऐसी कविता लिखना चाहता हूं, जो मुझसे बात करे...

मन के नैन हजार.......:
‎"मैं ऐसी कविता लिखना चाहता हूं, जो मुझसे बात करे...
: ‎"मैं ऐसी कविता लिखना चाहता हूं, जो मुझसे बात करे। जो एक व्यक्ति के मन से बात करे, उसका मर्म समझे। और एक व्यक्ति क्या, जो समूची आवाम का द...

‎"मैं ऐसी कविता लिखना चाहता हूं, जो मुझसे बात करे।

जो एक व्यक्ति के मन से बात करे, उसका मर्म समझे।

और एक व्यक्ति क्या, जो समूची आवाम का दर्द समझे।

मैं ऐसी कविता लिखना चाहता हूं, जो मिट्टी के बारे में हो।

प्रेम की वेदना के बारे में हो, दो जून रोटी की शिद्दत जो समझे।

जेल से लौटे कैदियों की मनः स्थिति व आजादी को जो बता सके।

जो मृत्यु से भय खाने वाले आदमी का भयभीत सा चेहरा दिखा सके।

और उस आदमी का हौसला बता सके जो मौत के आगे सीना ताने खड़ा हो।"

शनिवार, 7 जुलाई 2012

कबाडिय़ों को नीलाम हो रही बीमारियां - मेडिकल वेस्ट बेच रहा है ई टेक ग्रुप


-- संतोष मिश्रा-- 09329117655
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07 जुलाई 2012 - भिलाई - छत्तीसगढ़
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स्वास्थ्य सेवाओं की उत्कृष्टता बनाये रखने जहां मेकाहारा रायपुर, जवाहरलाल नेहरू चिकित्सालय सेक्टर-9, अपोलो बीएसआर हास्पिटल सहित जिला अस्पताल दुर्ग चिकित्सा के क्षेत्र में नित नये आयाम गढ़ते हुए न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि राज्य से लगे अन्य प्रदेशों से भी मरीजों को चंगा करने का इतिहास बनाते रहे हैं बल्कि प्रदेश के कुछ चिकित्सालय दीगर क्लिष्ट बिमारियों से पीडि़त मरीजों को विशेषज्ञता के साथ स्वस्थ कर अपने माथे सितारे जडऩे में सफल रहे हैं। उनकी सफलता और ख्याति के बीच अनेक ऐसी घटनाएं भी घटीं जो समय समय पर हास्पिटल प्रबंधन को कठघरे में खड़ा कर देती थीं। जन स्वास्थ्य से जुड़ा एक और ऐसा संवेदनशील मुद्दा नजर के सामने आ खड़ा हुआ है जो चिकित्सा जगत में प्रदेश के लिए बदनुमा दाग साबित होगा। 
वर्षों से भिलाई के औद्योगिक क्षेत्र में चंद रूपयों के लिए लोगों के स्वास्थ्य से न सिर्फ खिलवाड़ हो रहा है बल्कि जाने कितनी जानी अनजानी बिमारियाँ व संक्रमण व्यावसायिकता के इस दौर में लोगों को अपना शिकार बना चुके होंगे। लोगों की जिंदगी से एक ऐसा भयानक खेल, जो कि चिकित्सा व्यवसाय से जुड़े लोगों, स्वास्थ्य विभाग, पर्यावरण विभाग और पुलिस विभाग की नजरों के सामने से जाने-अनजाने न जाने कितनी बार गुजरा होगा लेकिन इसे रोकने किसी प्रकार की पहल तो दूर किसी ने जनस्वास्थ्य के इस मसले पर कभी मानों पड़ताल तक नहीं की। यह मामला है भिलाई के लाईट इण्डस्ट्रीयल एरिया स्थित मेडिकल वेस्ट डिस्पोज प्लांट का, जहां का मैनेजमेंट चंद रूपयों की अवैध कमाई के लिए संक्रमित सिरिंज, वायल इंजेक्शन, एंपुल, आईवी सेट, वीपी सेट, कैथेटर्स, दास्ताने पिछले कई वर्षों से शासन-प्रशासन की आंख में धूल झोंकते हुए कबाडिय़ों को बेचता रहा है। मेडिकल वेस्ट खरीदने कबाडिय़ों के बीच की होड़ इस अंदेशे से कत्तई इंकार नहीं किया जा सकता कि ऐसी चीजें कबाडिय़ों के गोदाम से दोबारा इस्तेमाल के लिए अस्पताल व मेडिकल स्टोर्स पहुँच रही हैं। भिलाई, दुर्ग, रायपुर में तो मेडिकल वेस्ट की मांग बढ़ी ही है लेकिन जानकारी के अनुसार दिल्ली से अनेक सौदागर इन कबाडिय़ों से इतनी अधिक मात्रा में डिमांड कर रहे हैं कि मुँह मांगे दाम पर इसकी पूर्ति न कर पाने का मलाल कबाडिय़ों के बीच साफ तौर पर देखा जा सकता है।

छत्तीसगढ़ के रायपुर, भिलाई, दुर्ग के आलावा हैदराबाद, मध्यप्रदेश के भोपाल व इंदौर स्थित अस्पताल, पैथालॉजी लैब, एलोपेथिक डाक्टर्स क्लिनिक व डायग्नोस्टिक सेंटर्स से ई-टेक प्रोजेक्ट प्रायवेट लिमिटेड को मेडिकल वेस्ट डिस्पोज-ऑफ करने का ठेका दिया गया है। ई-टेक ग्रुप छत्तीसगढ़ में रायपुर, दुर्ग, भिलाई के लगभग 190 अस्पताल, 95 पैथालॉजी लैब, हजार से अधिक एलोपेथिक डाक्टर्स क्लिनिक व लगभग 45 डायग्नोस्टिक सेंटर्स से मेडिकल वेस्ट उठाता है तथा भिलाई के 172-ए लाईट इण्डस्ट्रीयल एरिया स्थित ट्रीटमेंट प्लांट में सरकारी व निजी अस्पतालों का बायो मेडिकल वेस्ट इंसीनेटर में जला कर डिस्पोज ऑफ करता है। औद्योगिक क्षेत्र में ई-टेक ग्रुप ने क्षेत्रीय पर्यावरण नियंत्रण बोर्ड से एनओसी ले रखी है। इस काम के ठेके की आड़ में ई-टेक ग्रुप मेडिकल वेस्ट डिस्पोज करने की बजाय लम्बे समय से एक गैर कानूनी धंधा भी संचालित करता रहा है, और यह कारोबार है वेस्ट की छटाई कर उसे कबाडिय़ों को बेचना। 

ई-टेक प्रोजेक्ट प्रायवेट लिमिटेड में पिछले तीन दिनों से नजर रखने और बातचीत के दौरान अनेक ऐसे खुलासे हुए हैं जो आसानी से यह साबित करते हैं कि चंद रूपयों के सामने मानवीय संवेदना को ताक पर रख यह ग्रुप और क्षेत्र के कबाड़ी आसानी से जाने कितनी जिंदगियों से खिलवाड़ करने जरा भी नहीं हिचकते। इस प्लांट से मेडिकल वेस्ट का 80 फीसदी हिस्सा हर रोज कबाड़ तक पहुँच रहा है और कबाड़ी इन्हीं संक्रमित वेस्ट को इकट्ठा कर राजधानी रायपुर से दिल्ली तक पहुँचा रहे हैं। 

00 नियम कानून ताक पर-खामियों से भरा ई टेक प्लांट
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बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट एण्ड हैण्डलिंग रूल्स 1998 व संशोधित प्रारूप 2000 के मुताबिक मेडिकल वेस्ट का उचित ढंग से निपटारा करना लाजिमी है। बिना नष्ट किए वेस्ट फेंकना भी जुर्म की श्रेणी में रखा गया है। वेस्ट डिस्पोज-ऑफ के लिए पीला, नीला, लाल, काला बैग या कंटेनर प्लांट में जरूरी है। पीला कंटेनर-संक्रमित वेस्ट जैसे गोज, बैंडेज, मानव अंग के टुकड़े, मवाद, ड्रेसिंग, नीला कंटेनर-सीरिंज, वायल इंजेक्शन, एंपुल, कांच के सामान, लाल कंटेनर-प्लास्टिक से संबंधित आईवी सेट, वीपी सेट, कैथेटर्स, दास्ताने, काला कंटेनर-साधारण वेस्ट, खाने-पीने व मरीजों की जूठन के लिए निश्चित किया गया है लेकिन ई-टेक प्लांट में ये सारी वस्तुएं नहीं हैं क्योंकि यहां अधिकांश वेस्ट धड़ल्ले से बेच दिया जा रहा है। नियम के मुताबिक बायो वेस्ट अन्य कचरे में नहीं मिलना चाहिए, साथ ही भण्डारण, परिवहन, उपचार और निपटान के लिए कंटेनर या बैग अलग होने चाहिए। कंटेनर में अपशिष्ट का लेबल भी आवश्यक है। वेस्ट को 48 घंटे के भीतर संग्रहित तथा डिस्पोज-ऑफ करना होता है लेकिन ई-टेक प्लांट में कबाडिय़ों ने किराये पर कमरे भी ले रखे हैं जिनमें उनका वेस्ट जमा हो कर अलग-अलग दिन मेटाडोर में लोड हो कर गोदाम तक पहुँचता है। प्लांट में ग्लूकोज बोतल, सिरिंज, दास्ताने, आईवी सेट, कैथेटर्स, इंजेक्शन, एंपुल की डिमांड के अनुसार छटनी करने वाले दिहाड़ी मजदूर 100 रूपये की रोजी और कबाडिय़ों के कमीशन पर घंटों बिना मॉस्क और दास्ताने के काम करते हैं। कोई भी संक्रामक डिस्पोजल सिरिंज इन्हें जिंदगी भर के लिए किसी भी भयानक बीमारी का शिकार बना सकती है।

बिना पहचान मेडिकल वेस्ट का सौदा व निर्धारित दाम का जिक्र करते हुए यहां के सुपरवाईजर इकराम भाई वेस्ट को डिस्पोज ऑफ करने का पूरा तरीका बताते हैं, वो जानते हैं कि सिरिंज, आईवी सेट, कैथेटर्स, दास्ताने संक्रमित हैं, इन्हें इंसीनेटर में जला कर खत्म करना ही उनकी ड्यूटी है। रि-सायकल प्रोसेस में सभी वेस्ट की छटनी कर अलग-अलग तापमान पर जला कर खत्म करना है। प्लास्टिक को निश्चित तापमान में आटो क्लेव में डाल कर उबालना है, फिर ग्राइंडर में कटिंग के बाद मेल्ट करना है, इसके बाद गिट्टा बना कर स्टेंडर्ड दाना में परिवर्तित करना है। तब कहीं जा कर प्लास्टिक का उपयोग कर सकते हैं लेकिन लम्बे समय से आटो क्लेव का प्रयोग यहां नहीं किया जा रहा है। बात ही बात में इकराम यह भी बता गया कि मेडिकल वेस्ट चार-पांच वर्षों से यह प्लांट बेच रहा है, जिस कबाड़ी या पार्टी का ऊंचा भाव माल उसी को जायेगा। भिलाई ही नहीं ज्यादा डिमांड होने पर अच्छे दाम मिलते हैं तो इंदौर प्लांट से भी माल उठवाने का जिम्मा सुपरवाईजर व मैनेजर का है बशर्ते दाम ठीक समय पर और सही मिले। इकराम ने बताया कि कम्पनी के मैनेजर सिराजुल भाई भोपाल में रहते हैं तथा हर तीन माह में विजिट कर कबाडिय़ों का हिसाब ले कर चले जाते हैं। ग्रुप के डायरेक्टर दो वर्ष पहले एक बार छत्तीसगढ़ आए थे और रायपुर के एक होटल में दो दिन रूकने के बाद हिसाब ले वो भी चले गये थे। 48 घंटे के भीतर वेस्ट को डिस्पोज-ऑफ करने के नियम संबंधी सवाल के जवाब में इकराम ने बताया कि माल इतना ज्यादा होता है कि छटनी में ही घंटों बीत जाते हैं हालांकि दोनो शिफ्ट में मजदूर लगाये जाते हैं लेकिन माल वही जलाया जाता है जो बिकता नहीं।
कुछ महीने पहले आग लगने से प्लांट का शेड भी क्षतिग्रस्त हुआ है, इंसीनेटर कैपेसिटी माल की तुलना में कम है इसलिए आधे से अधिक वह वेस्ट जो कबाड़ी नहीं खरीते इंसीनेटर के बगल में ही जमा कर आग लगा दी जाती है। इसका जहरीला धुआं चिमनी की बजाय शेड की जर्जर छत से निकल पीछे बसी आवासीय श्रमिक बस्ती तक पहुँच रहा है। बस्ती के लोग परेशान जरूर हैं लेकिन सामान्य धुआं समझ प्लांट की मनमानी वर्षों से सह रहे हैं।
यह प्लांट सुपरवाईजर इकराम की देख-रेख में संचालित होता है, वो भी सिर्फ तीन घंटे के लिये प्लांट आता है। इस दौरान कौन से कबाड़ी को कितना वेस्ट भेजना है, इसका आर्डर व रूपये लेने के बाद वेस्ट की तौल तक का काम पूरी जिम्मेदारी से करता है। बचा वेस्ट जलाना होता है जो कि मजदूर यहां दो शिफ्ट में पूरा करते हैं। 

00 जिसके दाम ऊंचे-मेडिकल वेस्ट उसी कबाड़ी का............
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मेडिकल वेस्ट के सौदागर बने इस प्लांट में छत्तीसगढ़ संवाददाता को प्लांट में ही सुपेला संजय नगर स्थित एस के प्लास्टिक से पहुँचे इजहार कबाड़ी ने बताया कि वह पिछले चार वर्षों से नियमित तौर पर ई-टेक से वेस्ट खरीद रहा है। लगभग 20 टन वेस्ट जमा होने के बाद वह अलग-अलग पार्टियों को पिछले 12 वर्षों से दिल्ली में सप्लाई कर रहा है। रायपुर व भिलाई में भी ग्लूकोज बोतल, निडिल, सिरिंज के खरीददार अब मिलने लगे हैं। दिल्ली की पार्टियों की जितनी डिमांड होती है उतना माल मिलना संभव न होने पर गोदाम में इकट्ठा करते हैं क्योंकि उनकी बोली ऊंची होती है। जिस कबाड़ी के पास कम माल होता है उसे रायपुर व भिलाई के व्यापारी खरीदते हैं। इजहार व आजाद (कबाड़ी) ने जानकारी दी कि सुपेला सहित दुर्ग व रायपुर के अधिकांश कबाड़ी मेडिकल वेस्ट की डिमांड पिछले कुछ वर्षों से बढऩे की वजह से इस धंधे में आ गए हैं पहले मेडिकल वेस्ट में कुछ ही कबाडिय़ों की मोनोपॉली थी। कई शहरों में सीधे नर्सिंग होम भी उनसे डीलिंग करते हैं। मेडिकल वेस्ट का दिल्ली में क्या उपयोग हो रहा है, ये खुद कबाड़ी भी नहीं जानते उन्हें तो बस रूपयों की चमक उसी तरह अंधा कर गई है जैसे वर्षों से मेडिकल वेस्ट डिस्पोज ऑफ करने वाले ई-टेक ग्रुप को।

सुपेला संजय नगर पहुँचने पर एस के प्लास्टिक सहित कईयों के गोदाम में ग्लूकोज बोतल, कैथेटर्स, आईवी सेट से भरे झाल रखे मिले। यहां कबाडिय़ों ने एक व्यापारी के रूप में पहुँचे संवाददाता को सबके दाम भी बताए। कबाडिय़ों के मुताबिक सिरिंज 50 रूपये किलो, आईवी पाईप 40 रूपये किलो, निडिल 28 रूपये किलो तथा ग्लूकोज बोतल 26 रूपये किलो कबाड़ बाजार में बिक रही है। डायरेक्ट दिल्ली सप्लाई करने पर मनमाफिक दाम उन्हें मिलते हैं। एस के प्लास्टिक के मालिक आजाद के मुताबिक दिल्ली तक वो ही माल भेज पाते हैं बाकि छोटी मछलियां हैं, जो लोकल माल सप्लाई करती हैं।

00 कई बार रोकती है पुलिस-ले दे कर हो जाता है काम
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ई-टेक प्लांट सुपरवाईजर इकराम ने बताया कि फैक्ट्री से माल निकलने के बाद ट्रांसपोटिंग की सारी जवाबदारी कबाड़ी की है, बाहर पुलिस, प्रशासन को मेंटेन करना भी उसका ही रिस्क है। यहां से लम्बे समय से माल उठा रहे इजहार व आजाद ने संवाददाता को समझाईश देते हुए बताया कि मेडिकल वेस्ट गोदाम तक सुरक्षित ले जाना भी आसान काम नहीं है। प्लांट से दो रास्ते हैं और दोनों पर सेटिंग करनी पड़ती है। भिलाई क्षेत्र में लोहा कबाड़ काम बद होने से कई बार शक की बिनाह पर पुलिस वाले गाड़ी रोक माल गिरवा कर चेक करते हैं कि कहीं वेस्ट के नीचे लोहा तो नहीं है। किच-किच या अन्य कानूनी पचड़े से बचने हजार रूपये देने पड़ते हैं। गोदाम तक पहुँचने जामुल थाना, वैशाली नगर चौकी और सुपेला थाना छावनी चौक रूट से तथा पावर हाउस रूट हुआ तो छावनी थाना अक्सर झाल से भरे मेटाडोर को पुलिस का अदना सिपाही भी रोक देता है फिर पैसे देने ही पड़ते हैं।

00 एनओसी के बाद पर्यावरण नियंत्रण बोर्ड झांकता तक नहीं.....
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ई-टेक प्रोजेक्ट प्रायवेट लिमिटेड को क्षेत्रीय पर्यावरण नियंत्रण बोर्ड ने एनओसी दी हुई है तब से अब तक प्लांट में बोर्ड की कोई टीम आज तक नवहीं पहुँची। जर्जर शेड से निकलता मेडिकल वेस्ट का जहरीला धुआं और इसकी सडांध से पीछे बसी श्रमिक बस्ती और अगल-बगल के उद्योग कर्मचारी खासे परेशान हैं लेकिन इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं। शासन-प्रशासन की इसी लापरवाही का नतीजा है कि आटोक्लेव जलने के बाद जीर्ण-शीर्ण शेड के नीचे मेडिकल वेस्ट जलाया जा रहा है और लापरवाही की हद का ही परिणाम है कि ई-टेक प्लांट मेडिकल वेस्ट को कबाड़ में बेचने का वर्षों से धंधा पूरी दबंगता के साथ बिना किसी भय-भ्रांति के करता रहा है।  

00 क्या अब भी नहीं खुलेगी स्वास्थ विभाग की नींद........?
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बायो मेडिकल वेस्ट डिस्पोज-ऑफ करने की बजाय कबाड़ी तक पहुँचना और यहां से लोकल व बाहरी बाजार में इसका व्यापार सचमुच स्वास्थ विभाग की कुंभकरणी नींद के हालात बयां करता है। बेलगाम ई-टेक प्लांट में वर्षों से यह खेल जारी है और स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार लोग ऐसे गैर कानूनी कार्यों पर नजर झुकाए रहें-यह अपने आपमें सवालिया निशान है। बायो मेडिकल वेस्ट से वायरस जनित बीमारियां एचआईवी, हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी हो सकती है। इन्फेंक्शनव का भी खतरा होता है। टाइफाईड, इकोलाई, क्लेबसेला, स्यूडोमोनास, न्यूकॉकस, टीबी तथा वायरस से परजीवी संक्रमण जैसे जियार्डियासिस, कोलेरा का खतरा ई-टेक प्लांट की व्यावसायिकता के चलते कबाड़ और कबाड़ी से शहर भर में मंडरा रहा है। कबाडिय़ों के गोदाम में काम कर रहे पचासों छटाई मजदूर भी मिले जो बिना सुरक्षा उपकरणों के ऐसे वेस्टेज को सहेज रहे थे।  

00 विभागीय जांच में भी गड़बड़ी मिली थी-मालू
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छत्तीसगढ़ पर्यावरण नियंत्रण मंडल के क्षेत्रीय अधिकारी श्री मालू ने बताया कि ई-टेक प्रोजेक्ट को हास्पिटल, नर्सिंग होम और पैथालॉजी लैब से मिले वेस्ट का पूर्णत: निर्धारित तापमान पर विनिष्टिकरण करना है। समय-समय पर विभाग टीम सर्वे करती है, मेडिकल वेस्ट का ई-टेक ग्रुप द्वारा विक्रय किया जाना गलत है और इन्वायरमेंट प्रोटेक्शन एक्ट 1986 के खिलाफ है। इसी एक्ट की धारा 16 और 19 के तहत उसके खिलाफ प्रकरण बनता है। इसकी रिपोर्ट तैयार कर राज्य पर्यावरण नियंत्रण मंडल को भेजी जायेगी। श्री मालू ने बताया कि सामान्य जांच के दौरान विभाग ने पाया कि ई-टेक ग्रुप द्वारा मेडिकल वेस्ट डिस्पोज प्रोसेस को निर्धारित मापदंड पर नहीं किया जा रहा है। संबंधित रिपोर्ट हेड आफिस को भेजी गई है। आगे की कार्रवाई केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को ही करना है। 

00 कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए ईटेक पर-सीएमओ  
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जिला अस्पताल दुर्ग के सीएमओ डॉ. अजय दानी से जब ई-टेक द्वारा कबाडिय़ों को मेडिकल वेस्ट नीलाम किये जाने का खुलासा करने पर उन्होंने कहा कि यह मानव जाति के लिये बहुत ही खतरनाक व घिनौना काम किया जा रहा है, यह गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है। जिन बिमारियों को खत्म करने इन मेडिकल उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है वह पूर्णत: इन्हीं बिमारियों से संक्रमित हो जाते हैं। ऐसे संक्रमित सिरिंज, दास्तानों को खुले रूप में कबाडिय़ों को नीलाम करना समाज में बीमारी परोसने के समान है। ई-टेक प्रोजेक्ट को केवल इसीलिये स्वीकृति दी गई थी कि वो मेडिकल अपशिष्ट का प्रबंधन करते हुए इसका भष्मीकरण करे। इस निष्पादन कार्य की बजाय ई-टेक प्रोजेक्ट ने मेडिकल व पर्यावरण नियंत्रण बोर्ड के नियमों का उल्लंघन करता रहा है, इसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। 

00 मामला संज्ञान में आया है, कार्रवाई करेंगे-एएसपी
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अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक प्रशांत ठाकुर से छत्तीसगढ़ ने जब ई-टेक के व्यावसायीकरण को ले सवाल किये और इसकी रोक के लिये पुलिस विभाग की कार्रवाई की जानकारी मांगी तो श्री ठाकुर ने कहा कि खुलासा होने के बाद पुलिस के संज्ञान में यह संगीन अपराध सामने आया है, पुलिस ई-टेक के आलावा कबाडिय़ों के गोदामों में दबिश दे जल्द कड़ी कार्रवाई करेगी। 
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मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

जल्द नहीं उतर सकता "थर्ड आई" निर्मल बाबा का रंग


भिलाई के डहरिया परिवार ने मनाया जन्मदिन
-- संतोष मिश्रा--
लोग भले निर्मल बाबा के संबंध में कुछ भी कहें लेकिन उनके भक्तों का अटूट विश्वास कहीं कम नहीं हुआ है, यह दावा किया है भिलाई की कान्ट्रेक्टर कालोनी के डहरिया परिवार ने। इस परिवार का कहना है कि दसवंद पूजा और समागम में एक कुर्सी पाने की चाहत में आज भी कई भक्त रूपयों की गड्डी लिये खड़े हैं। टेलीविजन के वैज्ञापनिक समागम शो को देख कर पिछले पांच महीने से निर्मल बाबा ने कई लोगों के मन और घरों में आसानी से अपनी पहुँच बना ली है, नतीजतन भिलाई क्षेत्र से भी पिछले महीने निर्मल दरबार में लाखों रूपये गये हैं। कुछ परिवार तो ऐसे भी मिले जिनके घर भले रोजमर्रा के खर्च को रूपये कम पड़ रहे हों लेकिन वे बैंकों की कतार में खड़े अपनी आय का दस फीसदी हिस्सा जोड़ उसे जमा करने की होड़ में आज भी दिखाई देते हैं। कारण अंधश्रद्धा हो या फिर बिना परिश्रम आसानी से घर में भौतिक सुख और शांति की लालसा, जागरूकता की बयार अब भी कम पढ़े लिखे लोगों के मन में समा गई निर्मल बाबा की श्रद्धा के विमुख बहती नहीं दिखाई देती। भिलाई के एक परिवार ने कल बाकायदा आमंत्रण कार्ड छपवा निर्मलजीत सिंह नरूला का न सिर्फ जन्मदिन मनाया बल्कि डीजे की धुन में थिरकने के बाद सैकड़ों मेहमानों ने भंडारा में हिस्सा लेकर निर्मल बाबा के जयकारे भी लगाये। 
कान्ट्रेक्टर कॉलोनी निवासी दयाराम डहरिया का पूरा परिवार निर्मल बाबा की श्रद्धा में लवलीन है। इत्तेफाक से 16 अप्रैल को निर्मलजीत सिंह नरूला के जन्मदिन की जानकारी लगते ही इस परिवार ने 29 बरस से कभी न मनाये जाने वाले अपने बेटे राजेश के जन्मदिन को निर्मल बाबा की तस्वीर के साथ न सिर्फ धूमधाम से मनाया बल्कि मोहल्ले के आमंत्रित मेहमानों के समक्ष निर्मल बाबा के पॉवर का बखान करते हुए अपने परिवार की खुशहाली को उनकी कृपा का फल भी बताया। मध्यम वर्गीय परिवार के दयाराम ने तकरीबन 150 आमंत्रण कार्ड मोहल्ले और परिचितों के घर बांटे और निर्मल बाबा का जन्मदिन केक काटने के बाद सभी को दावत भी दी। दयाराम बताते हैं कि मीडिया की पहुँच से इस भव्य आयोजन को उन्होंने इसलिये दूर रखा है क्योंकि मीडिया निर्मल बाबा के खिलाफ भले हो गई है लेकिन उनका परिवार आज भी उन्हें उतनी ही श्रद्धा और भक्ति के माध्यम से देखता है। निर्मलजीत सिंह को साईं बाबा और शनिदेव का रूप बताते हुए दयाराम ने दावा किया कि पूजे जाने वाले सभी देवी देवताओं के समकक्ष आज भी निर्मल बाबा अनेक घरों में विराजमान हैं।    
जन्म से ही डहरिया परिवार ने घर के बेटे राजेश का जन्मदिन आज तक नहीं मनाया था। लेकिन इस बार जानकारी मिली कि निर्मल बाबा का जन्मदिवस उसी दिन है जिस दिन राजेश जन्मा था इसलिये दोनों का जन्मदिन धूमधाम से मनाने का निर्णय लेते हुए दयाराम ने सभी को आमंत्रित किया। दोपहर 2 बजे आमोद भवन के शिव मंदिर में निर्मल बाबा की तस्वीर ले खड़े राजेश ने रूद्राभिषेक व शिव पूजा की और 3 बजे से मंदिर प्रांगण में महाभोग और भण्डारा का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। शाम को बर्थडे ब्वाय राजेश और निर्मल बाबा के नाम से केक काटा गया और डीजे की धुन में नाचते सभी मेहमानों और आमंत्रित मोहल्लेवासियों ने रात्रि भोज का आनंद भी लिया।

निर्मल भले चम्बल का डाकू हो, कोई फर्क नहीं पड़ता-राजेश
निर्मलजीत सिंह भले चम्बल के डाकू क्यों न हों, उनका थर्ड आई पॉवर और उनका प्रभाव डहरिया परिवार और उनके अन्य भक्तों के विश्वास को कहीं डिगा नहीं सकता। डहरिया परिवार का 29 वर्षीय राजेश पहले तो चर्चा करने ना-नुकुर करता रहा लेकिन दयाराम के सहयोग के निर्देश के बाद राजेश ने खुल कर सभी सवालों के जवाब दिये। राजेश ने कहा कि सारा मीडिया निर्मल बाबा के प्रभाव को उनके भक्तों के मन से रत्ति मात्र भी खत्म नहीं कर सकता। निर्मल बाबा का अतीत भले कितना भी बुरा हो वो भले चम्बल के डकैत रहे हों या फिर चोर या बड़े लुटेरे ही क्यों न हों आज डहरिया परिवार उनके प्रभाव से ही इतना बड़ा आयोजन कर पाया है। राजेश ने बताया कि उनका परिवार पिछले पांच महीनों से निर्मल बाबा को देवता के समान ही पूजता है। टेलीविजन चैनल पर निर्मल समागम देख उनकी भक्ति लौ इस परिवार ने जलाई और दसवंद पूजा और समागम के लिये प्रति माह लगातार पारिवारिक सदस्यों द्वारा जमा किये गये रूपयों को निर्मल दरबार के खाता में जमा करने का सिलसिला पांच महीने से नहीं रूका है। 
राजेश डहरिया का मानना है कि आज निर्मल बाबा की भले सच्चाई खुल कर सामने आ रही है लेकिन उनके अतीत से कुछ लेना-देना नहीं है, उनका थर्ड आई पॉवर सर्वशक्तिमान है जिससे वे लोगों का दु:ख दूर कर रहे हैं। पेशे से ड्रायवर राजेश ने दिसंबर महीने में निर्मल बाबा का कार्यक्रम देखते हुए अपने लिये एक सायकल की मन्नत रखी और एक महीने के भीतर ही उसने स्कूटर खरीद लिया। जहां तक राजेश के संबंध में मोहल्ले के लोगों ने बताया कि कुछ महीने पहले ही राजेश की मोटर सायकल फायनेंस कम्पनी ने किश्त न पटाने पर वापस ले लिया। इस संबंध में किये गये सवाल पर राजेश का कहना है कि वो अतीत था, अब वर्तमान में उनके घर की कंडीशन निर्मल बाबा के आशिर्वाद से ठीक हो गई है, उसके जीजा को काम मिल गया है, गुमसुम रहने वाला उसका छोटा भाई अब हंसने बोलने लगा है, परिवार के सभी सदस्य नियमित रूप से सप्ताह के पांच दिन मंदिर जाते हैं वहां चढ़ावा भी देते हैं। 

जयकारे के बीच नारियल तड़क जाने की फैलाई खबर 
डहरिया परिवार में पहले राजेश अपनी वास्तविक उम्र इसलिये छिपा रहा था कि उसके विवाह में उम्र की सच्चाई बाधक बनेगी। बाईक की सीजिंग मामले में उसका जवाब था कि वो तो निर्मल बाबा के भक्त बनने से पहले का मामला था। निर्मल की भक्ति के बाद राजेश ने ड्रायवर का काम इसलिये छोड़ दिया क्योंकि वह किसी की बात या घुड़की नहीं सुनना चाहता। अब राजेश खुद के लिये कार लेना चाहता है, उसे विश्वास है कि निर्मल बाबा के बताये मार्ग पर चलने से जल्द ही कार उसके दरवाजे होगी। फिलहाल केटरिंग वर्क से वह खुश है और परिवार के सदस्य कमाई का 10 फीसदी हिस्सा निर्मल दरबार में हर माह डालते रहेंगे। जन्मदिन आयोजन में पहुँचे लोगों को निर्मल बाबा की पॉवर का बखान समय-समय पर करते हुए उनके प्रति लोगों में विश्वास जगाने का प्रयास भी डहरिया परिवार करते रहा। लगभग चार बजे यह बात प्रचारित की गई कि निर्मल बाबा को चढ़ाया गया नारियल अपने आप तड़क गया जो कि उनकी पॉवर का प्रभाव है। कार्यक्रम में कुछ लोग अनमने भाव से भी पहुँचे थे और सभी की जुबान पर निर्मल दरबार के नाम पर जमा किये गये करोड़ों रूपये का जिक्र था जिनका जवाब भी दूसरे लोग देते दिखाई दिये। दोपहर के आयोजन में लगभग 60 से 70 महिलाएं पहुँची थीं जिन पर निर्मल बाबा की भक्ति हावी दिखाई पड़ी। अधिकांश महिलाएं निरक्षर थीं लेकिन शाम को केक काटने के बाद सैकड़ों युवा डीजे की धुन पर थिरकते दिखाई पड़े। जिन पर निर्मल बाबा का प्रभाव कम ही दिखाई पड़ा वे तो दावत मिलने से ज्यादा खुश थे। 

नींद की नौटंकी करने वाले को जगाना मुश्किल-डॉ. दिनेश मिश्रा
अंध श्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने डहरिया परिवार व निर्मल बाबा के संबंध में छत्तीसगढ़ से चर्चा में कहा कि जो व्यक्ति सोया हो उसे जगाया जा सकता है लेकिन जो जान बूझ कर आंखें बंद कर सोने का नाटक कर रहा हो वह चाह कर भी नहीं जगाया जा सकता। निर्मल बाबा के भक्त दूसरी ही श्रेणी के हैं जिनमें अंधश्रद्धा घर कर गई है। निर्मलजीत सिंह न तो किसी धर्म विशेष का शीर्षस्थ रहा है और न ही उसकी योग या किसी तरह की साधना के संबंध में सही जानकारी मिलती है, प्रायोजित लोगों के माध्यम से गलत तरीके और पूर्ति को लोगों के समक्ष समागम के जरिये परोसा गया और कम पढ़े लिखे लोग उस पर सहज ही विश्वास जगा बैठे। निर्मलजीत सिंह नरूला एक असफल व्यक्ति था जिसने खुद को स्थापित करने अनेक प्रयास किये जब सफल नहीं हुआ तो उसने थर्ड आई जागृत करने की बातें प्रचारित प्रसारित कर खुद की असीमित कमाई का जरिया ढूंढ लिया। मीडिया को भी व्यावसायिक नजरिये से ऐसे लोगों के वैज्ञापनिक आयोजनों को जनता के समक्ष नहीं परोसना चाहिए क्योंकि इससे कई लोगों के मन में भ्रम घर कर जाता है और इसकी परिणिति कहीं न कहीं जन-धन के अहित के रूप में सामने आती है। इसलिये खासकर इलेक्ट्रानिक मीडिया को ऐसे समागम जैसे विज्ञापनों का प्रसारण बंद करना चाहिए क्योंकि भारतवर्ष में एक बड़ा तबका ऐसे लोगों का है जो इन विज्ञापनों के पूर्व दिखाई जाने वाली सचेतक सूचना को पढ़ व समझ नहीं पाता। डहरिया परिवार जैसे अनेक लोग निर्मल बाबा के ढोंग के प्रभाव में हैं जिन्हें जल्द बाहर निकालना बहुत जरूरी है।
-----------------SANTOSH KUMAR MISHRA--------------------------------------(17/04/2012)--------------

बुधवार, 22 फ़रवरी 2012

"गारंटी है क्या.............आपके पास.........! नहीं न.......फिर......?"

"जाके पांव न फटे विबाई.......वो क्या जाने पीर पराई..........?"
आम जुबान में कई लोग किसी भी किस्म की कमजोरी को गाली की तरह इस्तेमाल करते हैं। गरीब को फटेहाल या दो कौड़ी का कहते हैं, किसी को लंगड़ा, किसी को लूला, पागल, अंधड़ा, कनवा.........! 
ये सारी जुबान तब तक तो ठीक है जब तक आपके परिवार में किसी को कुदरत से मिली ऐसी कोई तकलीफ न हो लेकिन जब घर पर कोई ऐसा हो तो क्या उस वक्त भी इसी तरह के शब्द उतनी ही आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं लोग.......? वैसे तो कहा गया है कि जिसके खुद के पैरों में विबाई न पड़ी हो वह दूसरों का दर्द क्या जाने लेकिन बेरहम और रहमदिल, अक्लमंद और नासमझ या कम समझ के बीच फर्क तो यही है कि दूसरों की भावनाओं को देखते हुए किसी ऐसी बात को गाली की तरह इस्तेमाल न करें जिस पर उनका कोई बस नहीं है।
"कुदरत को तौल करें फैसला........"
अगर कोई बद्तमीज है, घमंडी है, हिंसक है, भ्रष्ट या बेईमान है, दगाबाज या झूठा है तो ऐसी तमाम बातें कुदरत की दी हुई न हो कर लोगों की खुद की पाई हुई होती हैं।
किसी के बारे में न्यायसंगत तरीके से अगर ये बातें कहीं जाएं, तो ये गालियां नहीं हैं। बिना मेहनत जो दूसरों के हिस्से का खाता है, उसे हरामखोर कहने में भी कोई बुराई नहीं है, संसदीय व्यवस्था में इनमें से अधिकांश शब्दों को असंसदीय करार देकर निकाल दिया जाता है लेकिन जिम्मेदारी के साथ बोलचाल में इनके इस्तेमाल में कोई बुराई नहीं होती। किंतु जिन बातों पर किसी का बस नहीं चलता, जन्म से मिली हुई तकलीफों या साधारण रूप रंग को लेकर जब कोई जली-कटी जुबान का इस्तेमाल करता है तो वह यकीनन नाइंसाफी है। 
"गारंटी है क्या.............आपके पास, नहीं न....फिर......"
किसी दूसरे के बच्चे को काला-कलूटा कहने के पहले यग जरूर सोचें कि आपकी अगली पीढ़ी के रंग की आपको कोई गारंटी है....? मानसिक रूप से कमजोर या अविकसित किसी बच्चे को पागल कहने के पहले यह सोचें कि आपके परिवार में कोई ऐसा पैदा हो और उसे लोग इसी जुबान में बुलाएं तो आपको कैसा लगेगा.....?
...................(संतोष मिश्रा)