मैं समझता हूँ की उन सवालों पर विचार ही न किया जाय जो सवाल उपहासास्पद हों.जो बुद्धिमान होते हैं, वे चिंतन करते है. जो अज्ञानी हैं, वे धर्म के लेबिल लगे खाली डिब्बों की तरह हैं, जिनमें कंकड़ पड़े हुए हैं. जवाब देने पर भी डिब्बे बजेंगे. धर्म जीवन जीने की एक शैली है. शैलियाँ भिन्न हो सकती है.शैलिया परम्पराओं कों जन्म देती हैं.परम्पराएं अच्छी-बुरी हो सकती है. इनकी स्वीकारोक्ति का आर्थिक आधार होता है. दाढ़ी रखना परंपरा में शामिल है. सभी धर्म के लोग रखते है. सभी न तो मुसलमान होते हैं और न ही आतंकवादी. आतंकवाद के जन्म के कारणों का जानना ज़रूरी है. हर युग में आतंकवाद रहा है. कभी हमने आतंकवादियों कों राक्षस कहा तो कभी बाग़ी या टेररिस्ट, जो वर्ग सम्बंधित लागू व्यवस्था कों स्वीकार नहीं करता, वो अपना अलग रास्ता चुनता है. आतंकवाद भी अतिवादियों के संघर्ष का एक रास्ता है. गाँधी जी इसके विरोधी थे लेकिन माओत्सेतुंग समर्थक. सद्दाम के खिलाफ जब एक वर्ग ने विद्रोह किया तो तानाशाही ने हजारों लोगों कों मौत के घाट उतार दिया. बुश ने देखा की वो उसके हितों कों चोट पहुंचा रहा है तो उसने सद्दाम का ही तख्ता पलट दिया.यासिर अराफात की शुरूआत आतंकवाद की कोख से हुई थी. बाद में क्या हुआ, सब जानते है. इरानी इन्कलाब शाह के खिलाफ शुरू हुआ, अल्लामा खुमैनी आतंकवादी घोषित हो गए. सत्ता पलटी तो खुमैनी की विचारधारा कों संबल मिल गया. वो राष्ट्रवादी हो गए. मिस्र सहित दुनिया के असंख्य देशों की जेलों में असंख्य बागी या विद्रोही अतिवादी बंद हैं. तो मालूम हुआ की सारी जंगें, झडपें और संघर्ष अस्तित्व के अस्थायित्व के लिए होती हैं. इसमें सफलता भी है और विफलता भी. जहाँ तक व्यक्ति का प्रश्न है, वो न बुरा होता है न अच्छा, वो तो परिस्थितियों का दास है. जंगली पशुवों की तरह उसका भी जीवन-संघर्ष चलता रहता है.
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