शनिवार, 7 जुलाई 2012

कबाडिय़ों को नीलाम हो रही बीमारियां - मेडिकल वेस्ट बेच रहा है ई टेक ग्रुप


-- संतोष मिश्रा-- 09329117655
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07 जुलाई 2012 - भिलाई - छत्तीसगढ़
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स्वास्थ्य सेवाओं की उत्कृष्टता बनाये रखने जहां मेकाहारा रायपुर, जवाहरलाल नेहरू चिकित्सालय सेक्टर-9, अपोलो बीएसआर हास्पिटल सहित जिला अस्पताल दुर्ग चिकित्सा के क्षेत्र में नित नये आयाम गढ़ते हुए न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि राज्य से लगे अन्य प्रदेशों से भी मरीजों को चंगा करने का इतिहास बनाते रहे हैं बल्कि प्रदेश के कुछ चिकित्सालय दीगर क्लिष्ट बिमारियों से पीडि़त मरीजों को विशेषज्ञता के साथ स्वस्थ कर अपने माथे सितारे जडऩे में सफल रहे हैं। उनकी सफलता और ख्याति के बीच अनेक ऐसी घटनाएं भी घटीं जो समय समय पर हास्पिटल प्रबंधन को कठघरे में खड़ा कर देती थीं। जन स्वास्थ्य से जुड़ा एक और ऐसा संवेदनशील मुद्दा नजर के सामने आ खड़ा हुआ है जो चिकित्सा जगत में प्रदेश के लिए बदनुमा दाग साबित होगा। 
वर्षों से भिलाई के औद्योगिक क्षेत्र में चंद रूपयों के लिए लोगों के स्वास्थ्य से न सिर्फ खिलवाड़ हो रहा है बल्कि जाने कितनी जानी अनजानी बिमारियाँ व संक्रमण व्यावसायिकता के इस दौर में लोगों को अपना शिकार बना चुके होंगे। लोगों की जिंदगी से एक ऐसा भयानक खेल, जो कि चिकित्सा व्यवसाय से जुड़े लोगों, स्वास्थ्य विभाग, पर्यावरण विभाग और पुलिस विभाग की नजरों के सामने से जाने-अनजाने न जाने कितनी बार गुजरा होगा लेकिन इसे रोकने किसी प्रकार की पहल तो दूर किसी ने जनस्वास्थ्य के इस मसले पर कभी मानों पड़ताल तक नहीं की। यह मामला है भिलाई के लाईट इण्डस्ट्रीयल एरिया स्थित मेडिकल वेस्ट डिस्पोज प्लांट का, जहां का मैनेजमेंट चंद रूपयों की अवैध कमाई के लिए संक्रमित सिरिंज, वायल इंजेक्शन, एंपुल, आईवी सेट, वीपी सेट, कैथेटर्स, दास्ताने पिछले कई वर्षों से शासन-प्रशासन की आंख में धूल झोंकते हुए कबाडिय़ों को बेचता रहा है। मेडिकल वेस्ट खरीदने कबाडिय़ों के बीच की होड़ इस अंदेशे से कत्तई इंकार नहीं किया जा सकता कि ऐसी चीजें कबाडिय़ों के गोदाम से दोबारा इस्तेमाल के लिए अस्पताल व मेडिकल स्टोर्स पहुँच रही हैं। भिलाई, दुर्ग, रायपुर में तो मेडिकल वेस्ट की मांग बढ़ी ही है लेकिन जानकारी के अनुसार दिल्ली से अनेक सौदागर इन कबाडिय़ों से इतनी अधिक मात्रा में डिमांड कर रहे हैं कि मुँह मांगे दाम पर इसकी पूर्ति न कर पाने का मलाल कबाडिय़ों के बीच साफ तौर पर देखा जा सकता है।

छत्तीसगढ़ के रायपुर, भिलाई, दुर्ग के आलावा हैदराबाद, मध्यप्रदेश के भोपाल व इंदौर स्थित अस्पताल, पैथालॉजी लैब, एलोपेथिक डाक्टर्स क्लिनिक व डायग्नोस्टिक सेंटर्स से ई-टेक प्रोजेक्ट प्रायवेट लिमिटेड को मेडिकल वेस्ट डिस्पोज-ऑफ करने का ठेका दिया गया है। ई-टेक ग्रुप छत्तीसगढ़ में रायपुर, दुर्ग, भिलाई के लगभग 190 अस्पताल, 95 पैथालॉजी लैब, हजार से अधिक एलोपेथिक डाक्टर्स क्लिनिक व लगभग 45 डायग्नोस्टिक सेंटर्स से मेडिकल वेस्ट उठाता है तथा भिलाई के 172-ए लाईट इण्डस्ट्रीयल एरिया स्थित ट्रीटमेंट प्लांट में सरकारी व निजी अस्पतालों का बायो मेडिकल वेस्ट इंसीनेटर में जला कर डिस्पोज ऑफ करता है। औद्योगिक क्षेत्र में ई-टेक ग्रुप ने क्षेत्रीय पर्यावरण नियंत्रण बोर्ड से एनओसी ले रखी है। इस काम के ठेके की आड़ में ई-टेक ग्रुप मेडिकल वेस्ट डिस्पोज करने की बजाय लम्बे समय से एक गैर कानूनी धंधा भी संचालित करता रहा है, और यह कारोबार है वेस्ट की छटाई कर उसे कबाडिय़ों को बेचना। 

ई-टेक प्रोजेक्ट प्रायवेट लिमिटेड में पिछले तीन दिनों से नजर रखने और बातचीत के दौरान अनेक ऐसे खुलासे हुए हैं जो आसानी से यह साबित करते हैं कि चंद रूपयों के सामने मानवीय संवेदना को ताक पर रख यह ग्रुप और क्षेत्र के कबाड़ी आसानी से जाने कितनी जिंदगियों से खिलवाड़ करने जरा भी नहीं हिचकते। इस प्लांट से मेडिकल वेस्ट का 80 फीसदी हिस्सा हर रोज कबाड़ तक पहुँच रहा है और कबाड़ी इन्हीं संक्रमित वेस्ट को इकट्ठा कर राजधानी रायपुर से दिल्ली तक पहुँचा रहे हैं। 

00 नियम कानून ताक पर-खामियों से भरा ई टेक प्लांट
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बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट एण्ड हैण्डलिंग रूल्स 1998 व संशोधित प्रारूप 2000 के मुताबिक मेडिकल वेस्ट का उचित ढंग से निपटारा करना लाजिमी है। बिना नष्ट किए वेस्ट फेंकना भी जुर्म की श्रेणी में रखा गया है। वेस्ट डिस्पोज-ऑफ के लिए पीला, नीला, लाल, काला बैग या कंटेनर प्लांट में जरूरी है। पीला कंटेनर-संक्रमित वेस्ट जैसे गोज, बैंडेज, मानव अंग के टुकड़े, मवाद, ड्रेसिंग, नीला कंटेनर-सीरिंज, वायल इंजेक्शन, एंपुल, कांच के सामान, लाल कंटेनर-प्लास्टिक से संबंधित आईवी सेट, वीपी सेट, कैथेटर्स, दास्ताने, काला कंटेनर-साधारण वेस्ट, खाने-पीने व मरीजों की जूठन के लिए निश्चित किया गया है लेकिन ई-टेक प्लांट में ये सारी वस्तुएं नहीं हैं क्योंकि यहां अधिकांश वेस्ट धड़ल्ले से बेच दिया जा रहा है। नियम के मुताबिक बायो वेस्ट अन्य कचरे में नहीं मिलना चाहिए, साथ ही भण्डारण, परिवहन, उपचार और निपटान के लिए कंटेनर या बैग अलग होने चाहिए। कंटेनर में अपशिष्ट का लेबल भी आवश्यक है। वेस्ट को 48 घंटे के भीतर संग्रहित तथा डिस्पोज-ऑफ करना होता है लेकिन ई-टेक प्लांट में कबाडिय़ों ने किराये पर कमरे भी ले रखे हैं जिनमें उनका वेस्ट जमा हो कर अलग-अलग दिन मेटाडोर में लोड हो कर गोदाम तक पहुँचता है। प्लांट में ग्लूकोज बोतल, सिरिंज, दास्ताने, आईवी सेट, कैथेटर्स, इंजेक्शन, एंपुल की डिमांड के अनुसार छटनी करने वाले दिहाड़ी मजदूर 100 रूपये की रोजी और कबाडिय़ों के कमीशन पर घंटों बिना मॉस्क और दास्ताने के काम करते हैं। कोई भी संक्रामक डिस्पोजल सिरिंज इन्हें जिंदगी भर के लिए किसी भी भयानक बीमारी का शिकार बना सकती है।

बिना पहचान मेडिकल वेस्ट का सौदा व निर्धारित दाम का जिक्र करते हुए यहां के सुपरवाईजर इकराम भाई वेस्ट को डिस्पोज ऑफ करने का पूरा तरीका बताते हैं, वो जानते हैं कि सिरिंज, आईवी सेट, कैथेटर्स, दास्ताने संक्रमित हैं, इन्हें इंसीनेटर में जला कर खत्म करना ही उनकी ड्यूटी है। रि-सायकल प्रोसेस में सभी वेस्ट की छटनी कर अलग-अलग तापमान पर जला कर खत्म करना है। प्लास्टिक को निश्चित तापमान में आटो क्लेव में डाल कर उबालना है, फिर ग्राइंडर में कटिंग के बाद मेल्ट करना है, इसके बाद गिट्टा बना कर स्टेंडर्ड दाना में परिवर्तित करना है। तब कहीं जा कर प्लास्टिक का उपयोग कर सकते हैं लेकिन लम्बे समय से आटो क्लेव का प्रयोग यहां नहीं किया जा रहा है। बात ही बात में इकराम यह भी बता गया कि मेडिकल वेस्ट चार-पांच वर्षों से यह प्लांट बेच रहा है, जिस कबाड़ी या पार्टी का ऊंचा भाव माल उसी को जायेगा। भिलाई ही नहीं ज्यादा डिमांड होने पर अच्छे दाम मिलते हैं तो इंदौर प्लांट से भी माल उठवाने का जिम्मा सुपरवाईजर व मैनेजर का है बशर्ते दाम ठीक समय पर और सही मिले। इकराम ने बताया कि कम्पनी के मैनेजर सिराजुल भाई भोपाल में रहते हैं तथा हर तीन माह में विजिट कर कबाडिय़ों का हिसाब ले कर चले जाते हैं। ग्रुप के डायरेक्टर दो वर्ष पहले एक बार छत्तीसगढ़ आए थे और रायपुर के एक होटल में दो दिन रूकने के बाद हिसाब ले वो भी चले गये थे। 48 घंटे के भीतर वेस्ट को डिस्पोज-ऑफ करने के नियम संबंधी सवाल के जवाब में इकराम ने बताया कि माल इतना ज्यादा होता है कि छटनी में ही घंटों बीत जाते हैं हालांकि दोनो शिफ्ट में मजदूर लगाये जाते हैं लेकिन माल वही जलाया जाता है जो बिकता नहीं।
कुछ महीने पहले आग लगने से प्लांट का शेड भी क्षतिग्रस्त हुआ है, इंसीनेटर कैपेसिटी माल की तुलना में कम है इसलिए आधे से अधिक वह वेस्ट जो कबाड़ी नहीं खरीते इंसीनेटर के बगल में ही जमा कर आग लगा दी जाती है। इसका जहरीला धुआं चिमनी की बजाय शेड की जर्जर छत से निकल पीछे बसी आवासीय श्रमिक बस्ती तक पहुँच रहा है। बस्ती के लोग परेशान जरूर हैं लेकिन सामान्य धुआं समझ प्लांट की मनमानी वर्षों से सह रहे हैं।
यह प्लांट सुपरवाईजर इकराम की देख-रेख में संचालित होता है, वो भी सिर्फ तीन घंटे के लिये प्लांट आता है। इस दौरान कौन से कबाड़ी को कितना वेस्ट भेजना है, इसका आर्डर व रूपये लेने के बाद वेस्ट की तौल तक का काम पूरी जिम्मेदारी से करता है। बचा वेस्ट जलाना होता है जो कि मजदूर यहां दो शिफ्ट में पूरा करते हैं। 

00 जिसके दाम ऊंचे-मेडिकल वेस्ट उसी कबाड़ी का............
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मेडिकल वेस्ट के सौदागर बने इस प्लांट में छत्तीसगढ़ संवाददाता को प्लांट में ही सुपेला संजय नगर स्थित एस के प्लास्टिक से पहुँचे इजहार कबाड़ी ने बताया कि वह पिछले चार वर्षों से नियमित तौर पर ई-टेक से वेस्ट खरीद रहा है। लगभग 20 टन वेस्ट जमा होने के बाद वह अलग-अलग पार्टियों को पिछले 12 वर्षों से दिल्ली में सप्लाई कर रहा है। रायपुर व भिलाई में भी ग्लूकोज बोतल, निडिल, सिरिंज के खरीददार अब मिलने लगे हैं। दिल्ली की पार्टियों की जितनी डिमांड होती है उतना माल मिलना संभव न होने पर गोदाम में इकट्ठा करते हैं क्योंकि उनकी बोली ऊंची होती है। जिस कबाड़ी के पास कम माल होता है उसे रायपुर व भिलाई के व्यापारी खरीदते हैं। इजहार व आजाद (कबाड़ी) ने जानकारी दी कि सुपेला सहित दुर्ग व रायपुर के अधिकांश कबाड़ी मेडिकल वेस्ट की डिमांड पिछले कुछ वर्षों से बढऩे की वजह से इस धंधे में आ गए हैं पहले मेडिकल वेस्ट में कुछ ही कबाडिय़ों की मोनोपॉली थी। कई शहरों में सीधे नर्सिंग होम भी उनसे डीलिंग करते हैं। मेडिकल वेस्ट का दिल्ली में क्या उपयोग हो रहा है, ये खुद कबाड़ी भी नहीं जानते उन्हें तो बस रूपयों की चमक उसी तरह अंधा कर गई है जैसे वर्षों से मेडिकल वेस्ट डिस्पोज ऑफ करने वाले ई-टेक ग्रुप को।

सुपेला संजय नगर पहुँचने पर एस के प्लास्टिक सहित कईयों के गोदाम में ग्लूकोज बोतल, कैथेटर्स, आईवी सेट से भरे झाल रखे मिले। यहां कबाडिय़ों ने एक व्यापारी के रूप में पहुँचे संवाददाता को सबके दाम भी बताए। कबाडिय़ों के मुताबिक सिरिंज 50 रूपये किलो, आईवी पाईप 40 रूपये किलो, निडिल 28 रूपये किलो तथा ग्लूकोज बोतल 26 रूपये किलो कबाड़ बाजार में बिक रही है। डायरेक्ट दिल्ली सप्लाई करने पर मनमाफिक दाम उन्हें मिलते हैं। एस के प्लास्टिक के मालिक आजाद के मुताबिक दिल्ली तक वो ही माल भेज पाते हैं बाकि छोटी मछलियां हैं, जो लोकल माल सप्लाई करती हैं।

00 कई बार रोकती है पुलिस-ले दे कर हो जाता है काम
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ई-टेक प्लांट सुपरवाईजर इकराम ने बताया कि फैक्ट्री से माल निकलने के बाद ट्रांसपोटिंग की सारी जवाबदारी कबाड़ी की है, बाहर पुलिस, प्रशासन को मेंटेन करना भी उसका ही रिस्क है। यहां से लम्बे समय से माल उठा रहे इजहार व आजाद ने संवाददाता को समझाईश देते हुए बताया कि मेडिकल वेस्ट गोदाम तक सुरक्षित ले जाना भी आसान काम नहीं है। प्लांट से दो रास्ते हैं और दोनों पर सेटिंग करनी पड़ती है। भिलाई क्षेत्र में लोहा कबाड़ काम बद होने से कई बार शक की बिनाह पर पुलिस वाले गाड़ी रोक माल गिरवा कर चेक करते हैं कि कहीं वेस्ट के नीचे लोहा तो नहीं है। किच-किच या अन्य कानूनी पचड़े से बचने हजार रूपये देने पड़ते हैं। गोदाम तक पहुँचने जामुल थाना, वैशाली नगर चौकी और सुपेला थाना छावनी चौक रूट से तथा पावर हाउस रूट हुआ तो छावनी थाना अक्सर झाल से भरे मेटाडोर को पुलिस का अदना सिपाही भी रोक देता है फिर पैसे देने ही पड़ते हैं।

00 एनओसी के बाद पर्यावरण नियंत्रण बोर्ड झांकता तक नहीं.....
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ई-टेक प्रोजेक्ट प्रायवेट लिमिटेड को क्षेत्रीय पर्यावरण नियंत्रण बोर्ड ने एनओसी दी हुई है तब से अब तक प्लांट में बोर्ड की कोई टीम आज तक नवहीं पहुँची। जर्जर शेड से निकलता मेडिकल वेस्ट का जहरीला धुआं और इसकी सडांध से पीछे बसी श्रमिक बस्ती और अगल-बगल के उद्योग कर्मचारी खासे परेशान हैं लेकिन इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं। शासन-प्रशासन की इसी लापरवाही का नतीजा है कि आटोक्लेव जलने के बाद जीर्ण-शीर्ण शेड के नीचे मेडिकल वेस्ट जलाया जा रहा है और लापरवाही की हद का ही परिणाम है कि ई-टेक प्लांट मेडिकल वेस्ट को कबाड़ में बेचने का वर्षों से धंधा पूरी दबंगता के साथ बिना किसी भय-भ्रांति के करता रहा है।  

00 क्या अब भी नहीं खुलेगी स्वास्थ विभाग की नींद........?
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बायो मेडिकल वेस्ट डिस्पोज-ऑफ करने की बजाय कबाड़ी तक पहुँचना और यहां से लोकल व बाहरी बाजार में इसका व्यापार सचमुच स्वास्थ विभाग की कुंभकरणी नींद के हालात बयां करता है। बेलगाम ई-टेक प्लांट में वर्षों से यह खेल जारी है और स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार लोग ऐसे गैर कानूनी कार्यों पर नजर झुकाए रहें-यह अपने आपमें सवालिया निशान है। बायो मेडिकल वेस्ट से वायरस जनित बीमारियां एचआईवी, हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी हो सकती है। इन्फेंक्शनव का भी खतरा होता है। टाइफाईड, इकोलाई, क्लेबसेला, स्यूडोमोनास, न्यूकॉकस, टीबी तथा वायरस से परजीवी संक्रमण जैसे जियार्डियासिस, कोलेरा का खतरा ई-टेक प्लांट की व्यावसायिकता के चलते कबाड़ और कबाड़ी से शहर भर में मंडरा रहा है। कबाडिय़ों के गोदाम में काम कर रहे पचासों छटाई मजदूर भी मिले जो बिना सुरक्षा उपकरणों के ऐसे वेस्टेज को सहेज रहे थे।  

00 विभागीय जांच में भी गड़बड़ी मिली थी-मालू
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छत्तीसगढ़ पर्यावरण नियंत्रण मंडल के क्षेत्रीय अधिकारी श्री मालू ने बताया कि ई-टेक प्रोजेक्ट को हास्पिटल, नर्सिंग होम और पैथालॉजी लैब से मिले वेस्ट का पूर्णत: निर्धारित तापमान पर विनिष्टिकरण करना है। समय-समय पर विभाग टीम सर्वे करती है, मेडिकल वेस्ट का ई-टेक ग्रुप द्वारा विक्रय किया जाना गलत है और इन्वायरमेंट प्रोटेक्शन एक्ट 1986 के खिलाफ है। इसी एक्ट की धारा 16 और 19 के तहत उसके खिलाफ प्रकरण बनता है। इसकी रिपोर्ट तैयार कर राज्य पर्यावरण नियंत्रण मंडल को भेजी जायेगी। श्री मालू ने बताया कि सामान्य जांच के दौरान विभाग ने पाया कि ई-टेक ग्रुप द्वारा मेडिकल वेस्ट डिस्पोज प्रोसेस को निर्धारित मापदंड पर नहीं किया जा रहा है। संबंधित रिपोर्ट हेड आफिस को भेजी गई है। आगे की कार्रवाई केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को ही करना है। 

00 कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए ईटेक पर-सीएमओ  
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जिला अस्पताल दुर्ग के सीएमओ डॉ. अजय दानी से जब ई-टेक द्वारा कबाडिय़ों को मेडिकल वेस्ट नीलाम किये जाने का खुलासा करने पर उन्होंने कहा कि यह मानव जाति के लिये बहुत ही खतरनाक व घिनौना काम किया जा रहा है, यह गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है। जिन बिमारियों को खत्म करने इन मेडिकल उपकरणों का इस्तेमाल किया जाता है वह पूर्णत: इन्हीं बिमारियों से संक्रमित हो जाते हैं। ऐसे संक्रमित सिरिंज, दास्तानों को खुले रूप में कबाडिय़ों को नीलाम करना समाज में बीमारी परोसने के समान है। ई-टेक प्रोजेक्ट को केवल इसीलिये स्वीकृति दी गई थी कि वो मेडिकल अपशिष्ट का प्रबंधन करते हुए इसका भष्मीकरण करे। इस निष्पादन कार्य की बजाय ई-टेक प्रोजेक्ट ने मेडिकल व पर्यावरण नियंत्रण बोर्ड के नियमों का उल्लंघन करता रहा है, इसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। 

00 मामला संज्ञान में आया है, कार्रवाई करेंगे-एएसपी
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अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक प्रशांत ठाकुर से छत्तीसगढ़ ने जब ई-टेक के व्यावसायीकरण को ले सवाल किये और इसकी रोक के लिये पुलिस विभाग की कार्रवाई की जानकारी मांगी तो श्री ठाकुर ने कहा कि खुलासा होने के बाद पुलिस के संज्ञान में यह संगीन अपराध सामने आया है, पुलिस ई-टेक के आलावा कबाडिय़ों के गोदामों में दबिश दे जल्द कड़ी कार्रवाई करेगी। 
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