शनिवार, 16 जुलाई 2011

God li Pooja Pe Julm Ki Dastaan.......16 july 2011

हाउसिंग बोर्ड कालोनी में दत्ता परिवार द्वारा 7 वर्षीय मासूम बच्ची से पिछले दो वर्षों से अमानवीय ढंग से घरेलु काम काज करवाया जाता रहा है। दो वर्षों से यह बच्ची बंधुआ मजदूर की तरह इस परिवार के दबाव में खटती रही है। चार दिन पहले दत्ता परिवार के चंगुल से भाग निकली इस बच्ची ने एक कबाड़ी के घर घटना का वृतान्त बता शरण ले रखी है। दो दिन पहले कबाड़ी महबूब खान बच्ची को ले जामुल थाना पहुँचा था लेकिन पुलिस ने उसे पूजा को स्वयं के संरक्षण में रखने की हिदायत दे दी। सम्पर्क करने पर थाना प्रभारी आर पी शर्मा ने बताया कि पूजा ने बयान दिया है कि दत्ता परिवार उसकी इच्छा के विपरीत घरेलु काम करवाया, विरोध करने पर उससे मारपीट करते थे।
औद्योगिक क्षेत्र हाउसिंग बोर्ड में पिछले दो वर्ष से गोद लेने के बाद एक परिवार की लगातार यातना सहने वाली बंधक बनी 7 वर्षीय बच्ची ने भाग कर कालोनी के ही अन्य लोगों के पास शरण ली है। पूजा नाम की इस बच्ची ने बताया कि उसका पिता भगत जेल में बंद है जबकि मां अमरीका बाई मजदूरी का काम करती है। वह अपनी मां व भाई जितेन्द्र तथा बहन पूनम के साथ डंगनिया रायपुर में रहती थी। दो साल पहले हाउसिंग बोर्ड निवासी एस पी दत्ता परिवार ने उसकी मां से पूजा को मांगा था। इस दौरान दत्ता परिवार ने उसकी मां से कहा था कि वो पूजा को बेटी की तरह पालेंगे, उसे पढ़ायेंगे लिखायेंगे व उसकी शादी का पूरा खर्च उठायेंगे।
पूजा का कहना है कि वह मां को छोड़ नहीं आना चाहती थी लेकिन जबरन मां ने उसे दत्ता परिवार के साथ भेज दिया। दरअसल दत्ता परिवार बेटी नहीं एक नौकरानी चाहता था। जब भी दत्ता परिवार बाहर घूमने जाता पूजा को बाथरूम के अंदर घंटों बंद रखा जाता था। घर के मुख्य दरवाजे पर हमेशा ताला जड़े होने के कारण पूजा न तो बाहर निकल पाती और न ही पड़ोसी ही जान पाये कि दत्ता परिवार ने पूजा को गोद लिया है। वह तो उसे घर की सफाई, झाड़ू पोछा करते कभी क भार आंगन में देखा करते थे। पूजा 12 जुलाई की दोपहर पूजा अचानक एस पी दत्ता के एमआईजी 2870 स्थित निवास का गेट फांद कर भाग निकली। यहां से 200 मीटर की दूरी पर कालीबाड़ी चौक पहुँचने के बाद एक जूस दुकान में संचालक से उसने भूख का हवाला देते हुए खाने को मांगा। आस-पास के लोगों ने उसे समीप के ही कबाड़ी महबूब खान के घर भेज दिया। महबूब खान ने बताया कि आस-पास पूछताछ करने के बाद भी पूजा का पता नहीं लग पाया। कबाड़ी ने परिजनों के इंतजार में उसे अपने घर आसरा दिया। महबूब की पत्नी बीना रानी मन्ना ने बताया कि दो दिन बाद वे जामुल थाना लेकर बच्ची को गये तब पूजा का बयान लेने के बाद पुलिस ने पूजा को पुन: कबाड़ी महबूब के घर फिलहाल रखने कहा। जामुल थाना प्रभारी आर पी शर्मा ने बताया कि बच्ची को दत्ता परिवार ने गोद लिया है, इसलिये अग्रिम कार्रवाई के लिये बच्ची की मां अमरीका बाई को बुलवाया गया है।

00 घर के कचरे में पूजा ढूंढती थी खाना.......
पालन-पोषण की पूरी जिम्मेदारी लेने वाले दत्ता परिवार के चंगुल से भागी पूजा के संबंध में निगम की ओर से घर-घर क चरा एकत्रित करने वाले रिक्शा चालक ने बताया कि वह रोज उसकी गाड़ी तक कचरा देने आती थी। कचरे की पॉलिथीन से एक दिन कुछ निकाल कर खाने का प्रयास कर रही पूजा को उसने जब टोका तो पूजा ने उसे भूख का हवाला दिया था। पूजा ने बताया कि दत्ता परिवार उसे भर पेट खाना नहीं देता था। सुबह चार बजे उठने के बाद नन्ही पूजा दत्ता के 2400 वर्गफुट में बने घर की सफाई करती थी, बरतन भी सुबह ही मांजना पड़ता था। दो वर्षों में पूजा को सिर्फ एक कपड़ा दिया गया था जिसे वह 24 घंटे पहनती थी। पूजा ने बताया कि उसे एस पी दत्ता, उनकी पत्नी दीपाली दत्ता और 26 वर्षीय बेटा अमरजीत दत्ता हमेशा काम क रवाते तथा देर होने पर पिटाई करते थे। पूजा बताती है कि सुबह 4 बजे से देर रात तक वह सिर्फ और सिर्फ काम क रती थी। रात में बचे जूठन से पेट भरने के बाद उसे बरतन मांजना पड़ता और पूरे घर की सुबह शाम सफाई करनी पड़ती थी। सप्ताह में दो दिन कार की सफाई भी पूजा से करवाई जाती थी।

00 हाथ-पैर की उंगलियां सडऩे लगी थीं.................
जब पूजा से बात की तो वह अपना दर्द बताते बताते फूट फूट कर रो पड़ती थी। उसका कहना है कि उसे एक डंडे से अक्सर पीटा जाता था। उसके हाथ व पैर की उंगलियां लगातार पानी में रहने के कारण सडऩे लगी थीं। दर्द होने पर जब वह काम से इंकार करती तो उसे पीटा जाता और बाथरूम में बंद कर दिया जाता। घंटों बंद रहने के बाद भूख के कारण वह पुन: काम में जुट जाती तब उसे खाना दिया जाता था। पूजा अपनी मां के पास वापस जाना चाहती है, दत्ता परिवार की पिटाई का डर उसके चेहरे पर अब भी देखा जा सकता है। वह बताती है कि घर से बाहर निकलने की उस पर खास पाबंदी थी। एक बार वह घर से निकल पड़ोस में पहुँची थी, बगल में अंटी से बात करने के बाद अमरजीत से उसे वापस घर बुलाया और पूछताछ के बाद उसे पीटने के बाद दिन भर खाना नहीं दिया गया था।

00 नहीं कर सकते पालन-दत्ता परिवार से खतरा..........
जामुल थाना द्वारा कबाड़ी पर थोप दी गई यह बच्ची महबूब खान व उसकी पत्नी के लिये परेशानी का ही सबब बन गई है। बीना रानी ने बताया कि पालन-पोषण जैसे-तैसे कर सकते हैं लेकिन कल देर रात एस पी दत्ता तीन लोगों के साथ उसके घर पहुँचे और बच्ची को हवाले करने की धमकी देने लगे। महबूब खान ने कहा कि हम अगर बच्ची को रखते भी हैं तो दत्ता परिवार से वे नहीं लड़ सकते। खान के मुताबिक राज्य शासन या जिला प्रशासन को यह सोचना चाहिए कि बच्ची कहां रहे, उन्होंने तो बस सभ्य नागरिक होने का फर्ज निभाते हुए पुलिस को खबर दिया और तीन दिन तक बच्ची को रखा। बीना ने बताया कि बच्ची बुरी तरह डरी हुई है, हमने उसके हाथ-पांव की सड़ रही उंगलियों के लिये दवा लाई, उसे कपड़े दिये तब कहीं जाकर उसके मुंह से शब्द फूटने लगे हैं।

00 कालोनीवासियों में रोष-घेरा जामुल थाना
घटना की जानकारी लगते ही दोपहर 12 बजे हाऊसिंग बोर्ड कालोनीवासियों ने पूजा को न्याय दिलाने और दत्ता परिवार के चंगुल से बचाने के लिये जामुल थाना घेर दिया है। प्रदर्शनकारियों का क हना है कि जामुल पुलिस ने इस मामले में ढिलाई बरती और बच्ची की सुरक्षा का इंतजाम करने की बजाय उसे पुन: कबाड़ी के हवाले कर दिया जबकि दत्ता परिवार पर अपराध पंजीबद्ध कर पूजा के पालन-पोषण की जवाबदारी तय करना था। प्रदर्शन के दौरान पूजा की मां अमरीका बाई को थाना बुलवाया गया है। दत्ता परिवार के घर पहुँचे छत्तीसगढ़ संवाददाता को श्रीमती दीपाली दत्ता व उनके बेटे अमरजीत ने कुछ भी बताने से इंकार कर दिया है। उन्होंने कहा कि एस पी दत्ता शाम को घर लौटेंगे तभी आकर जानकारी ले सकते हैं, ऐसा कह दत्ता परिवार ने दरवाजा बंद कर दिया।
काफी प्रयास के बाद एस पी दत्ता से मोबाइल पर सम्पर्क होने पर बताया कि बच्ची का बयान सरासर झूठा है और कुछ ज्यादा इस मामले पर नहीं कहूंगा। उन्होंने कहा कि वे बाहर हैं तथा शाम तक भिलाई वापस आने के बाद ही कुछ बता सकेंगे। खबर यह भी है कि दत्ता कल रात कबाड़ी के घर वकील लेकर पहुँचे थे तथा जबरन बच्ची को सामने लाने की मांग करते रहे। जब महबूब खान ने जामुल पुलिस को खबर की तो पुलिस ने उन्हें दूसरे दिन बच्ची की मां को लेक र आने कहा है, उसके बयान के बाद ही पूजा दत्ता परिवार के हवाले की जायेगी। एस पी दत्ता पूजा की मां अमरीका बाई को लेने सुबह से ही रायपुर निकल गये हैं।

-- संतोष मिश्रा -- (सिटी चीफ - छत्तीसगढ़)

शनिवार, 9 जुलाई 2011

“वह चुपचाप चलता रहा, चलता रहा..................”

“वह चुपचाप चलता रहा, चलता रहा..................”

उस दिन मां के साथ जब मामूली–सी बात पर उसका झगड़ा हो गया तो वह बिना नाश्ता किए ही ड्यूटी पर जाने के लिए बस–अड्डे की ओर चल पड़ा ।

घर से निकलते वक़्त मां के यह बोल उसे ख़ंजर की तरह चुभे, “ तेरी आस में तो मैने तेरे अड़ियल और नशेबाज बाप के साथ अपनी सारी उम्र गाल दी, कि चलो बेटा बना रहे, और दुष्ट तू भी…।” मां के शेष बोल आँसुओं में भीग कर रह गए । वह जा़र–ज़ार रोने लगी।

घर से बस–अड्डे तक का सफर तय करते हुए उसे बार–बार यही ख्याल आता रहा कि वह मां के कहे बोल नहीं बल्कि मां द्वारा सृजित एक–एक अरमान को पांवों तले रौंदता चला जा रहा है । पर वह चुपचाप चलता रहा, चलता रहा।

बस–अड्डे पर पहुंचकर जब वह अपनी बस की ओर बढ़ा तो देखा, मां हाथ में रोटी वाला डिब्बा लिए उसकी बस के आगे खड़ी थी।

बेटे को देखते ही मां ने रोटी वाला डिब्बा उसकी ओर बढ़ा दिया। मां के खामोश होंठ जैसे आंखों पर लग गए हों । एकाएक अनेक आंसू मां की पलकों का साथ छोड़ गए ।

मां को ऐसे रोते देख कर उससे एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाया गया और अगले ही पल वह मां के चरणों में था ।

‘‘ऐ, मुझे मत पकड़ों। तुम्हारे कोमल हाथ गन्दे हो जाएगे।’’

वह खुशनुमा सुबह थी। पूरब की लाली और मन्द हवा में झूमते वृक्ष उसे अच्छे लगे। उसने काले सफेद बादलों को देखा और इठलाते हुए आगे बढ़ गया । तभी उसे लगा कि बादलों के साथ–साथ वह भी उड़ रहा है। धूल का उड़ना उसे अच्छा लगा। उसे कलरव करते पक्षी और रंग–बिरंगे फूलों के इर्द–गिर्द इतराती तितलियां अधिक मोहक लगीं। आज उसने अधमरे, कचरे–से–कुत्ते को भी नहीं मारा।

फिर उसने खुद को उस खेल के मैदान में पाया। वह खुशी से तालियां बजाने लगा। तभी उसे गेंद आकर लगी। वह धन्य हो गया। आज पहली बार उसने क्रिकेट की गेंद को छुआ था।

सुन्दर झील को देखते हुए वह उस रेलवे फाटक के पास पहुंचा। आज उसकी प्रसन्नता का कोई ओर–छोर नहीं था उस छोटी–सी रेलगाड़ी को इतने करीब से गुजरते देखकर। उसमें सवार यात्रियों की वह कल्पना करने लगा। तभी उसे लगा कि उसने धुएं को पकड़ लिया है। धुंए ने उससे कहा, ‘‘ऐ, मुझे मत पकड़ों। तुम्हारे कोमल हाथ गन्दे हो जाएगे।’’

उसने अपने काले और खुरदरे हाथों को देखा। तभी किसी की पुकार सुन उसकी तन्द्रा टूटी। दूर ईट की भट्ठी से उसका बाप उसे बुला रहा था।

रोटी.........?

रोटी.........?

चार वर्ष का लड़का सड़क किनारे बैठा लम्बी सिसकियों के साथ रो रहा था। उसके आँसुओं ने उसके गंदे चेहरे पर धारियाँ बना दी थी। लड़का कुछ देर रुकता और फिर रोने लगता।

एक व्यक्ति बहुत देर से रोते हुए लड़के को देख रहा था। उसके अंदर इच्छा हुई कि जाने आखिर यह लड़का इतनी देर से रो क्यों रहा है।

व्यक्ति ने लड़के वे समीप आकर पूछा–क्यों रो रहा है तू क्या हुआ तुझे, लड़का सिसकते -सिसकते बोला भूख लगी है।’’ व्यक्ति आश्चर्य से बोला भूख लगी हैं। अरे तेरे हाथ में तो रोटी है खाता क्यों नहीं।
लड़के ने व्यक्ति की ओर देखते हुए कहा ‘‘खा लूँगा तो खत्म हो जाएगी।’’

मेरी टिप सार्थक हो गई...................

हमारी गाड़ी मध्यम रफ्तार से चली जा रही थी। छोटे–छोटे कस्बों से बढ़ते हुए। जब चाय पीने की तलब हुई तो क़स्बे से बाहर एक छोटे से ढाबे पर गाड़ी रुकवाई गई। वहां एक गुमटी पर मालिक बैठा था। सामने चार–पांच मर्तवान में बिस्कुट, नानखटाई वगै़रह रखे थे और कुछ बेंचें पड़ी थीं।

वेटर के नाम पर एक दस–ग्यारह वर्ष का लड़का था। उसे तुरंत अच्छी सी चाय बनाने के लिए बोला गया और हम लोगों ने अपना खाना–पीने का सामान निकाल लिया।
चाय से फ़ारिग होकर हमने पैसे पूछे तो लड़के ने नौ रुपए बताए। हमने दस रूपए दिए।

लड़का एक रुपया वापस लेकर आया। ऐसी जगह पर चूंकि टिप का प्रचलन नहीं होता है फिर भी आदत के मुताबिक़ वो एक रूपया मैंने उस लड़के को वापस रखने को दे दिए। लड़का कुछ समझ न सका। वह रूपया जाकर अपने मालिक को देने लगा। मालिक ने हम लोगों की ओर देखते हुए कहा कि ‘रख’लो ये तुम्हारा ही है।’

लड़के ने तुरंत उत्साहित होकर सामने रखे मर्तबान में से कुछ बिस्कुट निकाले और रुपया मालिक को देकर बेंच पर बैठकर बिस्कुट खाने लगा।

उसे बिस्कुट खाता देखकर मुझे लगा कि मेरी टिप सार्थक हो गई।

‘सवारी बैठी है’

‘सवारी बैठी है’

बस काफी भर चुकी थी। पर अभी भी एक सीट खाली पड़ी थी।
कई सवारियों ने वहाँ बैठना चाहा, पर साथ बैठा बुजुर्ग ‘सवारी बैठी है’ कहकर सिर हिला देता।
बुजुर्ग ने वहाँ एक झोला रखा हुआ था।

बस चलने तक किसी ने वहाँ बैठने की ज़िद न की। लेकिन जब बस चल पड़ी, तब कुछेक ने बैठने की ज़िद पकड़ ली।

बुज़ुर्ग का एक ही जवाब था कि ‘सवारी बैठी है।’

जब कोई पूछता कि सवारी कहाँ है, तो वह झोले की तरफ इशारा कर देता। असली बात का किसी को पता नहीं लग रहा था।

कुछ सवारियाँ अनाप–शनाप बोलने लगीं, बैठे हुए कुछ लोगों ने खाली सीट पर सवारी बैठाने की बुज़ुर्ग से विनती की।
बुज़ुर्ग ने फिर वही शब्द ‘सवारी बैठी है’ दोहरा दिए।

बात बढ़ गई थी। सवारियों ने ज़बर्दस्ती बैठने की कोशिश की, पर बुजुर्ग ने उन्हें आराम से मना कर दिया। वह कहीं गहरे में डूबा था। हारकर सवारियों ने कंडक्टर को सारी बात बताई।

बुजुर्ग ने ढीले हाथों से जेब में से दो टिकट निकालकर कंडक्टर को पकड़ा दिए।
आँसू पोंछते हुए उसने कहा, ‘‘दूसरा टिकट मेरे जीवन–साथी का है। वह अब इस दुनिया में नहीं रही। ये उसके फूल हैं......यह जीवनसाथी के साथ मेरा आखिरी सफर है।’’.....

“वह चुपचाप चलता रहा, चलता रहा..................”

“वह चुपचाप चलता रहा, चलता रहा..................”

उस दिन मां के साथ जब मामूली–सी बात पर उसका झगड़ा हो गया तो वह बिना नाश्ता किए ही ड्यूटी पर जाने के लिए बस–अड्डे की ओर चल पड़ा ।

घर से निकलते वक़्त मां के यह बोल उसे ख़ंजर की तरह चुभे, “ तेरी आस में तो मैने तेरे अड़ियल और नशेबाज बाप के साथ अपनी सारी उम्र गाल दी, कि चलो बेटा बना रहे, और दुष्ट तू भी…।”
मां के शेष बोल आँसुओं में भीग कर रह गए । वह जा़र–ज़ार रोने लगी।

घर से बस–अड्डे तक का सफर तय करते हुए उसे बार–बार यही ख्याल आता रहा कि वह मां के कहे बोल नहीं बल्कि मां द्वारा सृजित एक–एक अरमान को पांवों तले रौंदता चला जा रहा है । पर वह चुपचाप चलता रहा, चलता रहा।

बस–अड्डे पर पहुंचकर जब वह अपनी बस की ओर बढ़ा तो देखा, मां हाथ में रोटी वाला डिब्बा लिए उसकी बस के आगे खड़ी थी।

बेटे को देखते ही मां ने रोटी वाला डिब्बा उसकी ओर बढ़ा दिया। मां के खामोश होंठ जैसे आंखों पर लग गए हों । एकाएक अनेक आंसू मां की पलकों का साथ छोड़ गए ।

मां को ऐसे रोते देख कर उससे एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाया गया और अगले ही पल वह मां के चरणों में था ।